
दोस्ती की जब भी कभी बात हुआ करेगी /-
हमारा भी जिक्र दुनिया कहा सुना करेगी /-
मिलते रहे कदम कदम एक दूजे से हौसले
घोंसलों से निकले तो बुलंदियाँ छुआ करेंगी /-
कयामत से कम नहीं अब जुदाई का ख्याल
हकीकत ये लम्हा लम्हा मुझको डसा करेगी /-
ग्यारह रहे हमेशा हम एक और एक होकर,
क्या अब भी दोस्ती को ऐसी दुआ रहेगी /
तब्दिले जश्न करते गए मुश्किलों को हम
रस्मे जश्न कैसे अब यंहा मना करेगी /
गहरे हो जाएँ रिश्ते दिल के जब अभिन्न
दूरियाँ क्या खाक फिर उनको जुदा करेंगी
-सुरेन्द्र 'अभिन्न'
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete👌👌👌👏👏👏👏बेहतरीन उन्वान
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-07-2018) को "ओटन लगे कपास" (चर्चा अंक-3026) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut, bahut achchha laga.
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