चहुँ ओर प्रकृति का आह्लाद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
प्राची का अरुणिम विहान
नव किसलय का हरित वितान
रुनझुन-रुनझुन वायु के स्वर
नीड़-नीड़ में मुखरित गान
लहर-लहर बिम्बित उन्माद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाये मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आँचल
भँवरों की मीठी मनुहार
झरनों का कल-कल निनाद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
अंजलि में भर लूँ अनुराग
त्यागूँ मन की पीर- विराग
किरणों की लड़ियों की माला
पहनूँ, गाऊँ जीवन-राग
छिपा कहीं वेदन-अवसाद
फिर भी मन एकाकी आज
-शशि पाधा
बेहतरीन लेखन, सुन्दर शब्द चयन।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार 07-07-2018) को "उन्हें हम प्यार करते हैं" (चर्चा अंक-3025) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण और एकाकी मन की विहलता
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