सखी री .... मेघा आये द्वार...!
मदमाती गाती शीतल बहत बयार!!
सखी री....मेघा आये द्वार...!!
ढोल बजावत बदरा आये!
टिप..टिप बूँदन के सुर साजे!
तृषित धरा लेत अँगड़ाई!
श्रावण करत श्रृंगार.....!!
सखी री....मेघा आये द्वार...!!
रात अँधेरी दामिनी चमके!
दादुर मुखर भये चहुँ ओर!!
डार पात छुपि कोयल बोले!
ठमक ठमक नाचत बन मोर!!
सखी री ...मेघा आये द्वार....!!
हर्षित ताल तलैया....!
प्रकृति रही मुस्काय...!!
बाँकी चितवन नदिया झूमत!
नाविक छेड़े ...तान मल्हार....!!
सखी री....मेघा आये द्वार....!!
-उर्मिला सिंह
सुंदर रचना सखी री...मेघा आए द्वार...
ReplyDeleteउर्मि दी शानदार लाजवाब सच मन मोर भी ठुमक ने लगा ऐसी सुरीली तान छेड़ी आपने।
ReplyDeleteबहुत सरस गीत अप्रतिम ।
आदरणीय उर्मि जी बहुत ही सरस और मनमोहक ,मनभावन गीत मंझी लेखनी से परिचय करवाता है ।सादर शुभकामनाएं
ReplyDeleteआदरणीय उर्मि जी बहुत ही सरस और मनमोहक ,मनभावन गीत मंझी लेखनी से परिचय करवाता है ।सादर शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह दी मन मोहक से भाव छाये बदरा संग आज ...साथ ही सुंदर चित्र आपका मन को आया रास !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-07-2018) को "सोशल मीडिया में हमारी भूमिका" (चर्चा अंक-3023) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'