मिट्टी का जिस्म लेके मैं पानी के घर में हूँ
मंज़िल है मेरी मौत, मैं हर पल सफ़र में हूँ
होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे
लेकिन ख़बर नहीं कि मैं किसकी नज़र में हूँ
पीकर भी ज़हरे-ज़िन्दगी ज़िन्दा हूँ किस तरह
जादू ये कौन- सा है, मैं किसके असर में हूँ
अब मेरा अपने दोस्त से रिश्ता अजीब है
हर पल वो मेरे डर में है, मैं उसके डर में हूँ
मुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियाँ
मैं तो न जाने कब से भँवर-दर-भँवर में हूँ
-राजेश रेड्डी
बहुत ही उम्दा रचना
ReplyDeleteउम्दा गजल ।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteहर पल वो मेरे डर मैं मैं उनके डर मैं हूँ ....बेहतरीन
ReplyDeleteआज के समय की सटीक वर्णन ...बेहतरीन उन्वान
👏👏👏👏👏👏👏👏👏
आज कल रिश्तों से उठ गया है भरोसा
वो मेरी नजर में है में उसकी नजर में हूँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-07-2018) को "ब्लागिंग दिवस पर...." (चर्चा अंक-3020) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ReplyDeleteमुझसे न पूछिए मेरे साहिल की दूरियाँ
मैं तो न जाने कब से भँवर-दर-भँवर में हूँ - ye zindagi kisi ko naseeb na ho!