मईया बोली सुन मोरे लला
काम पड़्यो अति भारी
मै आऊँ तब तक तू ही
कर माखन रखवारी
तू कहत सदा ,
ग्वाल बाल ही है माखन के चोर
चोरी करत सब ,
और मेरे लल्लन पर
डालत दोष
आज तू ही संभाल माखन मोरो,
दूंगी तूझे घनेरो
सुन मईया की बात
मनमोहन पड़्यो घणे संकट मे
माखन भरो पड़्यो कटोरो
नही चख पाऊँ मै
निगरानी मे डारयो मईया
कैसी अनीति मचाई
सच माँ तू मोसे सयानी
चोर कू ही कोतवाल बनाई
मै तो जग को ठाकुर हूं,
पर तू मोरी भी माई।
-कुसुम कोठारी
बहुत सुन्दर रचना 👌👌👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-07-2018) को "समय के आगोश में" (चर्चा अंक-3036) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
तहे दिल से शुक्रिया राधा जी।
Deleteब्लॉग पर आके मूझे खुशी होगी मै अवश्य आऊंगी।
👏👏👏👏नटखट कन्हैया
ReplyDeleteयशोदा वा की मय्या
स्नेह आभार मीता ।
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