
तुमने लिखा था;
उस रात
खींचकर मेरा हाथ,
बना उंगली कलम से
प्यार नाम तुमने!
फ़ासला था हममें;
उस रात,
चारों ओर नीरवता
बेसुध सो रही थी।
तारिकाएँ ही जानती
दशा मेरे दिल की
उस रात।
मैं तुम्हारे पास होकर
दूर तुमसे जा रही थी।
अधजगा-सा, अलसाया-
अधसोया हुआ-सा मन,
उस रात।
तुमने खींच कर
मुझे अपनी ओर, फिर
से प्रस्ताव लिखा था,
साथ निभाने का जीवन
उस रात।
बिजली छूई तनमन को
सहसा जग कर देखा मैं
इस करवट पड़ी थी, तुम...
कि आँसू चुप बह रहे थे
उस रात।
जला दूँ उस संसार को
प्यार जो कायरता दिखाता,
पता.. उस समय क्या कर
और न कर गुज़रती मैं
उस रात।
प्रात ही की ओर को
हमेशा है रात चलती,
उजाले में अंधेरा डूबता,
शहर ही पूरा कि सारा
उस रात।
बदलता कौन? ऐसी
एक नया चेहरा सा
लगा लिया तुमने
था निशा का अद्भुत स्वप्न
उस रात।
मेरा पर ग़ज़ब का था
किया अधिकार तुमने।
और उतनी ही दूरियाँ..
पर, आज तक अन्तिम!
सौ बार मुड़ करके भी
न आये फिर कभी हम,
उस रात!
लौटा चाँद ना फिर कभी
और अपनी वेदना मैं,
आँखों की भाषा स्वयं
ख़ुद मुझमें बोलती हैं!!
-डॉ मधु त्रिवेदी
अद्भुत अप्रतिम ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना 👌👌
ReplyDeleteवाह !!!बहुत ही शानदार रचना।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह!!लाजवाब!!!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-07-2018) को "कौन सुखी परिवार" (चर्चा अंक-3045) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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ReplyDeleteनमस्कार:
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ReplyDeleteजला दूँ उस संसार को
प्यार जो कायरता दिखाता,
पता.. उस समय क्या कर
और न कर गुज़रती मैं
उस रात।
बेहतरीन संवेदनशील रचना....
बार बार पढता ही रह गया मैं।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विजय दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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