बारिशें थोड़ी जमो अभी
बादल थोड़े थमो अभी
मुस्कुराहटें थोड़ी तिरो अभी
हँसी थोड़ी झरो अभी
अनुभूतियाँ थोड़ी रुको अभी
उम्मीदें थोड़े ठिठको अभी
रंग थोड़े ठहरो अभी
उमंग थोड़ा ठौर अभी
प्रेम थोड़ा संग अभी!!
कि अब तक बहुत होश में थी
अब कुछ बेख्याल तो हो लूँ
जिन्दगी के सिरहाने बैठ
उसे थोड़ा जी तो लूँ!!
कहीं मन रीता न रह जाये!
~निधि सक्सेना
सुंदर भाव रचना ।
ReplyDeleteवाह रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत .... लाजवाब रचना।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आज़ादी के पहले क्रांतिवीर की जन्मतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteवाह अनुपम
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