पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
पेड़ों, लताओं, कलियों और फूलों को
चूमे सहलाए लाड़ लड़ाए !
पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
पीढ़े पे बैठी फुलकारी गढ़ती
नानी के माथे पे झलके
पसीने को पोंछे सुखाए,
हवा झलती जाए !
पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
कपड़े फैलाती भाभी के घूँघट को
फर - फर उड़ाए,
पीछे गिराए भाभी को
छेड़े और सताए
पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
खीझी सी भाभी,
जब घूँघट को कसके सिर पे जमाए
तो तीखे से झेकि से पल्लू झपटती
पूरा का पूरा गगन में उड़ाए
पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
बन्टी न सोए, चीखे और रोए तो
फर - फर फहराती
उसको दुलराती
मीठी सी थपकी दे-दे सुलाए
पुरवा की जब-जब चुनरी लहराए
जब - जब शन्नो छुपती
ठिठकती पिया के खत को
हँस – हँस के पढ़ती
पीछे से आके,
शैतान की नानी सी पन्ने बिखराए
पुरवा की जब - जब चुनरी लहराए
जब - जब धरती भट्टी सी तपती
चटकती गर्मी में ला के बौछारे,
शीतल फुहारे तन मन को,
सबके ठन्डक पहुँचाए !!
-डॉ. दीप्ति गुप्ता
अति सुन्दर फुलकारी ...👌👌👌👌👌
ReplyDeleteवाह !!!बहुत खूबसूरत रचना। लाजवाब
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteये पुरवा मीठी है तो शैतान भी है ... माँ को गुदगुदाती है तो शर्माने का इंतज़ाम भी करती है ...
वाह सुंदर मन भावन रचना ।
ReplyDeleteपुरवा!!!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 19 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1098 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.7.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3037 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह!!बहुत खूबसूरत सृजन !
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