ख़्वाब आते रहे, ख़्वाब जाते रहे,
तुमसे मिलने को थे तरसाते रहे!
बात हर ओर तेरी ही होती रही,
हम भी संग-संग तेरे गीत गाते रहे!
बीत जायेगा हर पल तुम्हारे बिना,
फिर भी हर पल तुम्हे क्यों बुलाते रहे!
एक जीवन मिला, एक तुम थे मिले,
सात जन्मों के रिश्ते निभाते रहे!
बात होती रही, बात बोले बिना,
उनसे जब-जब थे नज़रें मिलाते रहे!
-डॉ. अनिल चड्ढा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-08-2018) को "परिवारों का टूटता मनोबल" (चर्चा अंक-3050) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत खूबसूरत।
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