सड़क विस्तार के लिए
सारे पेड़ों के कटने के बाद
बस बचे हैं एक नीम और बरगद
जो अस्सी साल के साथ में
शोकाकुल हैं पहली बार
नीम बोला
परसों जब हरसिंगार कटा था
तो बहुत रोया बेचारा
सारे पक्षियों ने भी शोर मचाया
गिरगिट ने रंग बदले
गिलहरयां फुदकी
मगर कुल्हाड़ी नहीं पसीजी
और फिर वो मेरे से दो पौधे छोड़कर
जब शीशम कटा ना
तो लगा कि मैं भी रो दूँगा
चिड़िया के घौसलो से अंडे गिर गए
गिलहरियों को तो मैंने जगह दे दी
मगर तोते के बच्चे कोटर से गिरते ही मर गए
बरगद कराहा
वो मेरे पास में आम, गुंजन और महुआ थे ना
बेचारे गिड़गिड़ाए कि
हमारी सड़क वाली तरफ की टहनियां काट दो
सारे पक्षियों ने भी
चीं-चीं कर गोल-गोल चक्कर काटकर गुज़ारिश की
कि मत छीनो हमारा घर
पर पता नहीं ये आदमलोग
कौनसी ज़बान समझते हैं
धड़ाम करके कटकर ये नीचे गिरे
तो ज़मीन कंपकंपाई
मानो अपनी छाती पीट रही हो
नीम और बरगद बोले आपस में
ख़ैर जो हुआ सो हुआ
अब हम दोनों ही सम्भालेंगे
पक्षियों से लेकर
छाया में रूकने वालों को
अचानक बरगद बोला
ये विकास करने वाले फिर लौट आए
कहीं हमें तो नहीं काटेंगे
कहकर बरगद ने जोर से झुरझरी ली
नीम ने भरोसा दिलाया
अरे, ऐसे ही आए होंगे
सड़क तो बन गई है ना
अब भला क्यों काटेंगे हमें
थोड़ी देर में निशान लगने लगते हैं
आदमलोग कह रहे हैं
कि बसस्टॉप के लिए यही सबसे सही जगह हैं
इन दोनों को काट देते हैं
छोटा-सा शेड लग जाएगा
लिख देंगे प्रार्थना बस-स्टैंड
नीम चिल्लाया
अरे, मत काटो
हमारी छाया में बेंच लगा दो
हवा दे देंगे हम टहनियां हिलाकर
निम्बोली भी मिलेगी
और अच्छा लगेगा पक्षियों को देखकर
बरगद ने हामी भरी
सारे पक्षी आशंकित से नीचे ताकने लगे
आर्तनाद बेकार गया
पहले नीम की बारी आई
आँख में आँसू भर नीम ने टहनियाँ हिलाई
बरगद ने थामा क्षण भर नीम को
गलबहियाँ डाली दोनों ने
और धड़ाम से ख़त्म हो गया एक संसार
अब बरगद देख रहा है
उन्हें अपने पास आते
सिकुड़ता है
टहनियां हिलाता है
कातर नज़रों से ताकता है इधर-उधर
पक्षी बोलते-डोलते हैं
मगर नाशुक्रे आरी रखते हैं
और फिर सब ख़त्म
ये नीम और बरगद का क़त्ल नहीं है
एक दुनिया का उजड़ना है
बेज़ुबान जब मरते हैं
तो बदले में
बहुत कुछ दफ़न हो जाता है !!
-गोपालदास "नीरज"
अंतिम कविता
कड़वे सत्य को कैसे जीया जाता है,कैसे वेदना को स्वर दे कवि खामोश हो जाते हैं और आदम बस कविता गुनगुनाता है हाथ मे आरी और कुल्हाड़ी लेकर वैसे काटने वालो को दोष फिजूल है उनको बस अपने हुक्मरानों का आदेश पुरा करना है पर कटवाने वाले सदा पर्दे के पीछे होते हैं न जाने कौनसा स्वार्थ जिसे मजबूरी और जरूरी का बाना पहना दिया जाता है।
ReplyDeleteनीरज जी की हर कविता समाज की विसंगतियों पर सीधा प्रहार करती हुई हृदय को छूती है ।
अतुलनीय नमन कविवर को।
शतशत नमन ,महान कवि की लेखनी को🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteये नीम और बरगद का क़त्ल नहीं है
ReplyDeleteएक दुनिया का उजड़ना है
बेज़ुबान जब मरते हैं
तो बदले में
बहुत कुछ दफ़न हो जाता है !!बेहद मार्मिक रचना
बेहद मार्मिक रचना 🙏🙏🙏
ReplyDeleteकत्ल तो कत्ल रहा
ReplyDeleteपर मचा ना कोई शोर
कवि की कलम रो पड़ी
देख वृक्ष की चोट !
आ .नीरज जी की रचनाओं में सम्वेदना .पीडा और गहनता प्रवाहित होती ही ....उनके साथ मानो एक युग का अंत हो गया ....नमन काव्य पुरोधा को और धन्यवाद यशोदा जी को !
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आचार्य परशुराम चतुर्वेदी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteकत्लगारो के दिल मे कोई रहम नही
ReplyDeleteलुट जाती है नन्ही कलिया भी
हेवानो की हेवानियत का कोई शोर नही
टूट चुका है लोकतंत्र का चौथा स्तमभ शायद
आज बिक चुकी है कलमे सरे बाजार मे
कसम से कलम मे अब वो जोर नही ।।
Ise padh kar vakai aankh mein paani aa gaya..
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDelete