इक सहमी सहमी आहट है
इक महका महका साया है।
अहसास की इस तन्हाई में,
ये साँझ ढले कौन आया है।
ये अहसास है या कोई सपना है,
या मेरा सगा कोई अपना है।
साँसों के रस्ते से वो मेरे,
दिल में यूँ आ के समाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......
गुलाब की पांखुड़ी सा नाज़ुक,
या ओस की बूँदों सा कोमल।
मेरे बदन की काया को,
छू कर उसने महकाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......
शीतल चन्दा की किरणों सा,
या नीर भरी इक बदरी सा।
जलतरंग सा संगीत लिए,
जीवन का गीत सुनाया है।
अहसास की इस तन्हाई में ......
-डॉ. सरिता मेहता
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteWaah kya bat hai
ReplyDeleteBahut sunder rachna
अति सुँदर 👌👌👌👌
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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