विराने समेटे कितने पद चिन्ह
अपने हृदय पर अंकित घाव
जाता हर पथिक छोड छाप
अगनित कहानियां दामन मे
जाने अन्जाने राही छोड जाते
एक अकथित सा अहसास
हर मौसम गवाह बनता जाता
बस कोई फरियादी ही नही आता
खुद भी साथ चलना चाहते हैं
पर बेबस वहीं पसरे रह जाते हैं
कितनो को मंजिल तक पहुंचाते
खुद कभी भी मंजिल नही पाते
कभी किनारों पर हरित लताऐं झूमती
कभी शाख से बिछडे पत्तों से भरती
कभी बहार , कभी बेरंग मौसम
फिर भी पथिक निरन्तर चलते
नजाने कब अंत होगा इस यात्रा का
यात्री बदलते रहते निरन्तर
राह रहती चुप शांत बोझिल सी।
विराने समेटे..
- कुसुम कोठारी
बहुत ही खूबसूरत अशआर
ReplyDeleteजी शुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना
आप कुछ भी लिखे
मन को भा ही जाता है
आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे मित्र जी।
Deleteआभार हृदय तल से।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2824 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सादर आभार।
Deleteबहुत खूब!!
ReplyDeleteसादर आभार शुभा जी।
Deleteसादर आभार।
ReplyDeleteआदरणीय यशोदा दी मेरी रचना को आपकी धरोहर मे शामिल करने का बहुत बहुत आभार। आपका स्नेह आगे के लेखन को प्रोत्साहित करता है।
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