जर जर हवेलियां भी
संभाले खडी है
प्यार की सौगातें
कभी झांका था
एक नन्हा अंकुर
दिल की खिडकी खोल
संजोये रखूंगी प्यार से
जब तक खुद न डह जाऊंगी
ये जर जर हवेली
ना भूलेगी कभी
वो कोमल छुवन
वो नरम पवन
जो छू के उसे
छूती थी उसे
एक नन्हे के
कोमल हाथों जैसा
अहसास ना भूलेगी
ये जर जर हवेली ।
-कुसुम कोठारी
सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी शुक्रिया।
Deleteजी सादर आभार।
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