वो सवा याद आये भुलाने के बाद
जिंदगी बढ़ गई ज़हर खाने के बाद
दिल सुलगता रहा आशियाने के बाद
आग ठंडी हुई इक ज़माने के बाद
रौशनी के लिए घर जलाना पडा
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बाद
जब न कुछ बन पड़ा अर्जे-ग़म का जबाब
वो खफ़ा हो गए मुस्कुराने के बाद
दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है
दोस्तों का खुलूस आज़माने के बाद
बख़्श दे या रब अहले-हवस को बहिश्त
मुझ को क्या चाहिए तुम को पाने के बाद
कैसे-कैसे गिले याद आए "खुमार"
उन के आने से क़ब्ल उन के जाने के बाद
-ख़ुमार बाराबंकवी
वाह
ReplyDeleteउम्दा ।
ReplyDeleteबेहतरीन।
👏👏👏👏वाह बहुत खूब बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteगिले याद आये तेरे जाने के बाद ......
सामने थे तो फुर्सत ही कहाँ थी
ये भी याद आया तेरे जाने के बाद
waah
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-12-2017) को "पैंतालिसवीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर शुभकामनायें " चर्चामंच 2809 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'