Wednesday, December 13, 2017

मौत का मंतर न फेंक....डॉ. कुंवर बेचैन


दो दिलों के दरमियाँ दीवार-सा अंतर न फेंक
चहचहाती बुलबुलों पर विषबुझे खंजर न फेंक

हो सके तो चल किसी की आरजू के साथ-साथ
मुस्कराती ज़िंदगी पर मौत का मंतर न फेंक

जो धरा से कर रही है कम गगन का फासला
उन उड़ानों पर अंधेरी आँधियों का डर न फेंक

फेंकने ही हैं अगर पत्थर तो पानी पर उछाल
तैरती मछली, मचलती नाव पर पत्थर न फेंक

-डॉ. कुंवर बेचैन

12 comments:

  1. सुंदर बहुत ही सुंदर रचना

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  2. शुभ्र भावों का अपूर्व संगम हर शेर बेहतरीन।

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  3. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"

    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 14-12-2017 को प्रकाशनार्थ 881 वें अंक में सम्मिलित की गयी है। प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।

    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

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    1. सदाबहार रचना ! मेरे 'मानस' गुरु की रचना को सम्मान दिया। आपका बहुत आभार

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 12 - 2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2817 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  5. सदाबहार रचना ! मेरे मानस गुरु की रचना को सम्मान दिया। आपका बहुत आभार

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  6. बहुत अच्छी रचना ।

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  7. लाजवाब रचना ....
    वाह!!!!

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