Tuesday, December 19, 2017

गया कैसे...??.....'तरुणा'

मुझको वो छोड़कर गया कैसे...
वो तो था हमसफ़र गया कैसे ;

दिल पे क़ाबिज़ रहा जो बरसों से....
आज दिल से उतर गया कैसे ;

मैंने जो उम्र भर समेटा था...
वो उजाला बिख़र गया कैसे ;

वो जो इक पल जुदा न रहता था..
वो गया तो मगर गया कैसे ;

ख्व़ाब में भी न था गुमां जिस पर…
दुश्मनों के वो घर गया कैसे ;

कोई ख़ूबी नज़र तो आई है...
वरना मुझ पर वो मर गया कैसे ;

सिर्फ़ उस पर ही तो ये ज़ाहिर था...
राज़ आख़िर बिखर गया कैसे ;

राब्ता गर नहीं था 'तरुणा' से....
मुझको छू कर गुज़र गया कैसे ..!!
-'तरुणा'...!!!

5 comments:

  1. दिल को छूती हर पंक्ति.... बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-12-2017) को "शीत की बयार है" (चर्चा अंक-2823) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. सुंदर रचना...मन को भा गई... बहुत खूब

    ReplyDelete