Friday, December 22, 2017

बसंत आया (ताँका).....डॉ. सरस्वती माथुर


1. 
बसंत राग
धरा गगन छाया
सुमन खिलाने को
ऋतुराज भी
कोकिल सा कूकता
मधुबन में आया।
2.
सरसों झूमा
बासंती मौसम में
खेतों में लहराया
धरा रिझाने
तरूवल्ली सजाने
बसंतराज आया।
3.
बौराया मन 
कोयलिया पंचम
राग छेड़ती डोले
ओढ़ कर चूनर
बासंती रंग संग 
फूल पात पे डोले।
4.
प्रीत के गीत
गुनगुनाता आया
पीताम्बर डाल के
बसंत छाया
कोयलिया कुहकी
पलाश दहकाया।
-डॉ. सरस्वती माथुर

6 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना

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  2. वाह बसंत सी सौरम्य सुरभित रचना।

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  3. वाह बसंत सी सौरम्य सुरभित रचना।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-12-2017) को "सत्य को कुबूल करो" (चर्चा अंक-2825) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बसंत अाया(तांका) बहुत सुन्दर सृजना ।
    डा.सरस्वती माथुरजी, तांका अाैर सेदाेका रचना के संरचनामें फरक हैं ।
    नामसे तांका पर रचना पढने से मुझे ये ताे सेदाेका लगा ।

    अापकी हितैषी,
    राम शरण महर्जन
    काठमाडाैं, नेपाल ।

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