Monday, December 11, 2017

सर्द हवा की थाप....कुसुम कोठरी


सर्द हवा की थाप ,
बंद होते दरवाजे खिडकियां
नर्म गद्दौ में रजाई से लिपटा तन 
और बार बार होठों से फिसलते शब्द 
आज कितनी ठंड है 
कभी ख्याल आया उनका 
जिन के पास रजाई तो दूर
हड्डियों पर मांस भी नही ,
सर पर छत नही 
औऱ आशा कितनी बड़ी
कल धूप निकलेगी और 
ठंड कम हो जायेगी 
अपनी भूख, बेबसी, 
औऱ कल तक अस्तित्व 
बचा लेने की लड़ाई 
कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
दो कार्य एक साथ 
आज थोड़ा आटा हो तो 
रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।
-कुसुम कोठरी...

14 comments:

  1. गरीबी और हालात पर कुठाराघात करती बेहतरीन कविता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार।
      शुभ रात्री

      Delete
  2. सत्यता को दर्शाती अनूठी रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेह आभार शकुंतला जी।
      शुभ रात्री।

      Delete
  3. बहुत ही शानदार
    निखरती जा रही है रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार नीतू जी।
      शुभ रात्री।

      Delete
  4. Replies
    1. ढेर सा आभार शुभा जी।
      शुभ रात्री।

      Delete
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-12-2017) को जानवर पैदा कर ; चर्चामंच 2815 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी रचना को चुनेने के लिये सादर आभार।
      मै अनुग्रहित हुई।
      शुभ रात्री।

      Delete
  6. जी सादर आभार।
    शुभ रात्री।

    ReplyDelete
  7. मार्मिक ... न जाने कितने हाई लोगों की हक़ीक़त है ...
    और सुना है हमने बहुत तरक़्क़ी कर ली है ...

    ReplyDelete
  8. सही कहा....
    यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है देश का......
    बहुत सुन्दर
    वाह!!!!

    ReplyDelete