Sunday, December 3, 2017

शबनम की माला....कुसुम कोठारी

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सुबह धुंध से
धोई सी 
शबनम की माला
पोई सी 
गजल अभी तक
सोई सी 
आंख है क्यों कुछ
रोई सी 
यादें यादों मे
खोई सी 
गूंजी कानो मे
सरगोई सी
मन वीणा से
झंकृत हो
शब्दों की लड़ियां
संजोई सी ।

- कुसुम कोठारी 

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