Monday, September 29, 2014

अस्तित्व.............अनुप्रिया



 


















तुम उड़ती हो
उड़ जाता है मेरा
मन आकाश की
खुली बाहों में
बेफिक्री से

तुम टूटती हो
टूट जाता है
अस्तित्व
भड़भड़ाकर

तुम प्रेम करती हो
भर जाती हूँ मैं
गमकते फूलों
की क्यारियों से

तुम बनाती हो
अपनी पहचान
लगता है
मैं फिर से जानी
जा रही हूँ

तुम लिखती हो
कविताएं
लगता है
सुलग उठे हैं
मेरे शब्द तुम्हारी
कलम की आंच में


-अनुप्रिया
..... नायिका से

6 comments:

  1. बहुत खूब " मैं, मेरी कलम,मेरे शब्द तुम्हारी खुशबू की स्याही से तुम्हारी एक आकृति गढ़ देते हैं और अपलक निहारते रहते है " जैसी अनुभुतीओं से सराबोर एक सुन्दर रचना ,

    ReplyDelete
  2. आपकी नजर हमेशां सर्वश्रेष्ठ कृति पर पडती है

    ReplyDelete
  3. बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी कि आपने इतनी सुन्दर रचना पेश की। बहुत सुन्दर भाव है। स्वयं शून्य

    ReplyDelete
  4. तुम टूटती हो
    टूट जाता है
    अस्तित्व
    भड़भड़ाकर---- बेहद कोमल मन की कोमल रचना --- सहजता से कही गयी जीवन की गहरी बात --
    बहुत सुंदर ---
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ---

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    अष्टमी-नवमी और गाऩ्धी-लालबहादुर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    --
    मान्यवर,
    दिनांक 18-19 अक्टूबर को खटीमा (उत्तराखण्ड) में बाल साहित्य संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
    जिसमें एक सत्र बाल साहित्य लिखने वाले ब्लॉगर्स का रखा गया है।
    हिन्दी में बाल साहित्य का सृजन करने वाले इसमें प्रतिभाग करने के लिए 10 ब्लॉगर्स को आमन्त्रित करने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है।
    कृपया मेरे ई-मेल
    roopchandrashastri@gmail.com
    पर अपने आने की स्वीकृति से अनुग्रहीत करने की कृपा करें।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    सम्पर्क- 07417619828, 9997996437
    कृपया सहायता करें।
    बाल साहित्य के ब्लॉगरों के नाम-पते मुझे बताने में।

    ReplyDelete