बादबां खोलेगी और बंद-ए-क़बां ले जाएगी
रात फिर आएगी फिर सब कुछ बहा ले जाएगी
ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे दिन देख ले
क्या भरोसा कल कहां पागल हवा ले जाएगी
ये अंधेरे ग़नीमत कोई रस्ता ढूंढ़ लो
सुबह की पहली किरण आंखे उठा ले जाएगी
होश-मंदों से भरे हैं शहर और जंगल सभी
साथ किस-किस को भला काली घटा ले जाएगी
जागते मंजर, छतें, दालान, आंगन, खिड़कियां
अब के फेरे में हवा ये भी उड़ा ले जाएगी
एक इक करके सभी साथी पुराने पुराने खो गए
जो बचा है वो निगाह-ए-सुर्मा-सा ले जाएगी
जाते जाते देख लेना गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार
ज़िंदगी ली बांकपन लुत्फ़-ए ख़ता ले जाएगी
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
जन्मः 1956 अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
(1996 से गुमश़ुदा)
.................................................
बंद-ए-क़बां : कपड़े पर बंधी गाँठ,
निगाह-ए-सुर्मा-सा : काजल लगी आंखें,
गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार : दिन और रात,
बांकपन : आकर्षण, लुत्फ़-ए ख़ता : विलासिता
............रसरंग से
रात फिर आएगी फिर सब कुछ बहा ले जाएगी
ख़्वाब जितने देखने हैं आज सारे दिन देख ले
क्या भरोसा कल कहां पागल हवा ले जाएगी
ये अंधेरे ग़नीमत कोई रस्ता ढूंढ़ लो
सुबह की पहली किरण आंखे उठा ले जाएगी
होश-मंदों से भरे हैं शहर और जंगल सभी
साथ किस-किस को भला काली घटा ले जाएगी
जागते मंजर, छतें, दालान, आंगन, खिड़कियां
अब के फेरे में हवा ये भी उड़ा ले जाएगी
एक इक करके सभी साथी पुराने पुराने खो गए
जो बचा है वो निगाह-ए-सुर्मा-सा ले जाएगी
जाते जाते देख लेना गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार
ज़िंदगी ली बांकपन लुत्फ़-ए ख़ता ले जाएगी
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
जन्मः 1956 अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
(1996 से गुमश़ुदा)
.................................................
बंद-ए-क़बां : कपड़े पर बंधी गाँठ,
निगाह-ए-सुर्मा-सा : काजल लगी आंखें,
गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार : दिन और रात,
बांकपन : आकर्षण, लुत्फ़-ए ख़ता : विलासिता
............रसरंग से
बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteसार्थक पेशकश।
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल !
ReplyDeleteरब का इशारा
बहुत बढ़िया भावभीनी याद ...
ReplyDeleteएक-एक अक्षर--फूलों के बीच झांका और कांटों में खो गया!!!
ReplyDeleteबहुत खूब...
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