विष्णु के पा से ये चरम-ए-सफ़ा हुआ
तीनों जहां की शान में सिवा ईजाफ़ा हुआ ।
गंगा तेरी जबीं पे लिख्खा पयाम-ए-गम
आवाज-ए-दिलखराश पे है चरम-ए-नम ।
गंगा की शोख तबियत से रश्क-ए-अदम हुआ
तेरे लव-ए-जू पे क्यू मजलिस-ए-मातम हुआ ।
सुपुर्द-ए-खाक तुझसे जन्नत का सबब है
गंगा की निगेहबानी में मरना भी गजब है ।
अश्के-हिमाला को आबे-हयात कहा
शक्ल-ए-गंगा में खां कायनात कहा ।
इसरार-ए-भागीरथ तू जहां में नुमूद हुई
तेरे मुकद्दम आब की दुनिया मुरीद हुई ।
काशी में शिव का मस्कन आबे–कश्क है
सदके में शंकर के ये गंगा के अश्क है ।
दमें आखिर गंगेय का लबे–तर किया
मां की ममता का तुने यू इजहार किया ।
मस्लत-ए-अदम ने तुझे तार–तार किया
इस इज्ने-आम ने दिल जार-जार किया ।
संग-ए-दिवार से तुझे महबूस कर रहे
बाखुदा लुटने का काम तेरे मानूस कर रहे ।
रुस्वा किया तुमको तेरे मेहरबान ने
सीना-फिगार किया तेरे मेजबान ने ।
तपीरा-ए-गरल को तूने हिमानी किया
शिव के व्योम–केश को पानी–पानी किया
आबे फिरदौस तु तेरी हस्ती अजीमतर
मल्लिका-ए-जहां तू तेरे नक्श करीमतर ।
गुनाह-ए-बशर को गंगा ने सवाब किया
हमने मुकद्दम आब को जहराब किया ।
गंगा की हिफाजत मजहब-ए-हिंद है
तेरा अंदाज-ए-मोहब्बत मां के मानिंद है ।
मुर्दः रवा किया ‘शौक’ आबे-हयात में
अक्से फना क्यूं दिख रहा परतवे-हयात में ।
तीनों जहां की शान में सिवा ईजाफ़ा हुआ ।
गंगा तेरी जबीं पे लिख्खा पयाम-ए-गम
आवाज-ए-दिलखराश पे है चरम-ए-नम ।
गंगा की शोख तबियत से रश्क-ए-अदम हुआ
तेरे लव-ए-जू पे क्यू मजलिस-ए-मातम हुआ ।
सुपुर्द-ए-खाक तुझसे जन्नत का सबब है
गंगा की निगेहबानी में मरना भी गजब है ।
अश्के-हिमाला को आबे-हयात कहा
शक्ल-ए-गंगा में खां कायनात कहा ।
इसरार-ए-भागीरथ तू जहां में नुमूद हुई
तेरे मुकद्दम आब की दुनिया मुरीद हुई ।
काशी में शिव का मस्कन आबे–कश्क है
सदके में शंकर के ये गंगा के अश्क है ।
दमें आखिर गंगेय का लबे–तर किया
मां की ममता का तुने यू इजहार किया ।
मस्लत-ए-अदम ने तुझे तार–तार किया
इस इज्ने-आम ने दिल जार-जार किया ।
संग-ए-दिवार से तुझे महबूस कर रहे
बाखुदा लुटने का काम तेरे मानूस कर रहे ।
रुस्वा किया तुमको तेरे मेहरबान ने
सीना-फिगार किया तेरे मेजबान ने ।
तपीरा-ए-गरल को तूने हिमानी किया
शिव के व्योम–केश को पानी–पानी किया
आबे फिरदौस तु तेरी हस्ती अजीमतर
मल्लिका-ए-जहां तू तेरे नक्श करीमतर ।
गुनाह-ए-बशर को गंगा ने सवाब किया
हमने मुकद्दम आब को जहराब किया ।
गंगा की हिफाजत मजहब-ए-हिंद है
तेरा अंदाज-ए-मोहब्बत मां के मानिंद है ।
मुर्दः रवा किया ‘शौक’ आबे-हयात में
अक्से फना क्यूं दिख रहा परतवे-हयात में ।
-आलोक तिवारी
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गंगा मज़हब से ऊपर है...जीवन दायनी अमृत...बेहतरीन ग़ज़ल...
ReplyDeleteगंगा की हिफाजत मजहब-ए-हिंद है
ReplyDeleteतेरा अंदाज-ए-मोहब्बत मां के मानिंद है ।
अक्षरशः सत्य !