ये है तो सब के लिये हो ये ज़िद है हमारी
इस एक बात पे दुनिया से जंग ज़ारी है
उड़ान वालों उड़ानों पे वक्त भारी है
परों की अब नहीं हौसलों की बारी है
मैं कतरा होके भी तूफ़ां से जंग लेता हूं
मुझे बचाना समुंदर की जिम्मेदारी है
इसा बीच ज़लते हैं सहरा-ए-आरजू में च़राग
ये तिश्नगी तो मुझे जिंदगी से प्यारी है
कोई बताए ये उस के ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग लड़ी ही नहीं जो हारी है
हर एक सांस पे पहरा है बे-य़कीनी का
ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये इक चराग कई आंधियों पे भारी है
इस एक बात पे दुनिया से जंग ज़ारी है
उड़ान वालों उड़ानों पे वक्त भारी है
परों की अब नहीं हौसलों की बारी है
मैं कतरा होके भी तूफ़ां से जंग लेता हूं
मुझे बचाना समुंदर की जिम्मेदारी है
इसा बीच ज़लते हैं सहरा-ए-आरजू में च़राग
ये तिश्नगी तो मुझे जिंदगी से प्यारी है
कोई बताए ये उस के ग़ुरूर-ए-बेजा को
वो जंग लड़ी ही नहीं जो हारी है
हर एक सांस पे पहरा है बे-य़कीनी का
ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये इक चराग कई आंधियों पे भारी है
-जाहिद हसन वसीम (वसीम बरेलवी)
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सहरा-ए-आरजू : इच्छाओं का मरुस्थल,
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सहरा-ए-आरजू : इच्छाओं का मरुस्थल,
तिश्नगी : ख़्वाहिश, गुरूर-ए-बेजा : घमंड
जाहिद हसन वसीम (वसीन बरेलवी)
जन्म : 18 फरवरी, 1940, बरेली, रुहेलखण्ड,उत्तरप्रदेश.
जाहिद हसन वसीम (वसीन बरेलवी)
जन्म : 18 फरवरी, 1940, बरेली, रुहेलखण्ड,उत्तरप्रदेश.
बहुत शानदार रचना
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ReplyDeleteहर एक सांस पे पहरा है बे-य़कीनी का
ये ज़िंदगी तो नहीं मौत की सवारी है.
....kya sher hai.. waah
Bahut sunder gazal hai vaseem barewali ji ki ... Unke gazaalo me dam raha hai... Umdaa gazal sanjha karne ke liye aabhaar Yashoda ji!!
ReplyDeleteShandar rachana
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