कांटों में जो थोड़ी महक समाई है
फूलों ने ही दरियादिली दिखाई है
हो जाता गुलज़ार फलक पूरे दिल का
हंसती जब कोई कभी रोशनाई है
दुनिया से तो प्यार जताया है लेकिन
ना जाने क्यूं हाथ लगी रुसवाई है
सपनों को साकार बनाऊं फिर कैसे
राहों में पर्वत या फिर खाई है
न करता आंखों से चूमूं दरिया को
करता जो प्यासों की ही अगुआई है
-देव वंश दुबे
...........हेल्थ, पत्रिका से
फूलों ने ही दरियादिली दिखाई है
हो जाता गुलज़ार फलक पूरे दिल का
हंसती जब कोई कभी रोशनाई है
दुनिया से तो प्यार जताया है लेकिन
ना जाने क्यूं हाथ लगी रुसवाई है
सपनों को साकार बनाऊं फिर कैसे
राहों में पर्वत या फिर खाई है
न करता आंखों से चूमूं दरिया को
करता जो प्यासों की ही अगुआई है
-देव वंश दुबे
...........हेल्थ, पत्रिका से
लाज़वाब
ReplyDeleteदुनिया से तो प्यार जताया है लेकिन
ना जाने क्यूं हाथ लगी रुसवाई है
सपनों को साकार बनाऊं फिर कैसे
राहों में पर्वत या फिर खाई है
उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत खूब...
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