स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
सपने भी टूटे तो क्या,
अभी शेष समंदर मन में,
आंसू भी सूखे तो क्या।
आंसू भी सूखे तो क्या।
पत्ता-पत्ता डाली-डाली,
बरगद भी सूखा तो क्या,
जड़े शेष जमीं में बाकी,
गुलशन भी सूखा तो क्या,
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
गुलशन भी सूखा तो क्या,
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या,
अपने रूठे, सपने झूठे,
जग भी छूट गया तो क्या,
जन्मों का ये संग है अपना,
छूट गया इक जिस्म तो क्या
स्याही सूखी, कलम भी टूटी,
सपने भी टूटे तो क्या।
-शाश्वत
रिश्तें टूटे नाते छूटे
ReplyDeleteजीवन विखरा गया तो भी क्या
कफ़न अभी जलना बाकी है
चिता जल गई तो भी क्या
टूटी नहीं सांस अपनी है
सपने बिखर गये तो भी क्या
ज़िंदा आस अभी पूरी है
मौसम रूठ गया तो भी क्या
है कलम अभी तक ज़िंदा देखो
स्याही रूठ गई तो भी क्या
लिखने का ज़ज़्बात है बाकी
हाथ कट गए तो भी क्या
चलो चलें आगे बढ़ना है
रस्ते रूठ गए तो भी क्या
नज़र टिकी है मंज़िल पर
रहबर छूट गए तो भी क्या
आँखों में हैं कशिश प्यार की
चेहरे रूठ गए तो भी क्या
अश्कों में है अक्श किसी का
दर्पण टूट गए तो भी क्या
मधु "मुस्कान "
सत्य का आभास कराती शाशवत रचना...
ReplyDeleteओले गिरे
ReplyDeleteआंधियां चली
बाण भी चलें
अटूट बंधन पर तो क्या।
खुबसुरत रचना।
पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
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ReplyDeleteवाह ! इसे कहते हैं सच्ची जिजीविषा ! जो कुछ बाकी है वही अनमोल है वही सर माथे है ! इतनी सुन्दर रचना साझा करने के लिये आपका शुक्रिया यशोदा जी !
ReplyDeleteWah....bahut sundar rachna
ReplyDeleteBejod Rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपने रूठे, सपने झूठे,
ReplyDeleteजग भी छूट गया तो क्या,
जन्मों का ये संग है अपना,
छूट गया इक जिस्म तो क्या...!!!
सुंदर रचना के लिए बधाई ...!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
Bahut zabardast rachna....umdaaa!!!
ReplyDeletejabardast likha hai aapne
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