मेहनतकशों की सख्त हथेली से कट गयी
दीवार जो कुंए की थी रस्सी से कट गयी
क्या ज़ायका है खून का अपने को क्या पता
अपनी तो सूखी रोटी से चटनी से कट गयी
अंदाजा है तुम्हे कि किसी का थी वो नसीब
हाथों की एक लक़ीर जो मेहँदी से कट गयी
तन्हाई,जख्म माज़ी के और कोई धुंधली याद
एक सर्द रात गीली अंगीठी से कट गयी
मर्ज़ी से अपनी मरने का मौका भी कब मिला
और ज़िन्दगी भी औरों की मर्ज़ी से कट गयी
( नए मरासिम में प्रकाशित)
-सचिन अग्रवाल
हाथों की एक लक़ीर जो मेहँदी से कट गयी
तन्हाई,जख्म माज़ी के और कोई धुंधली याद
एक सर्द रात गीली अंगीठी से कट गयी
मर्ज़ी से अपनी मरने का मौका भी कब मिला
और ज़िन्दगी भी औरों की मर्ज़ी से कट गयी
( नए मरासिम में प्रकाशित)
-सचिन अग्रवाल
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteज़िन्दगी भी औरों की मर्ज़ी से कट गयी
Waaah zabardast abhivyakti....zabardast aashaar....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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