जो बिखरे रहते हैं
कभी इधर
कभी उधर
धर कर रूप मनोहर
मन को भाते हैं
जीवन के
कई पलों को साथ लिये
कभी हँसाते हैं
कभी रुलाते हैं ....
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।
~यशवन्त यश©इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।
शुभ प्रभात भाई यशवन्त जी
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ
आपने मेरी धरोहर को
ये 500वीं प्रस्तुति दी है
यादगार प्रस्तुति है ये
सादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
वाह....
ReplyDeleteबधाइयाँ
शुक्रिया यशवन्त
हिन्दी दिवस का उपहार दिया आपने
सादर
वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद एवं बधाई दीदी !
ReplyDeleteसादर
अति सुन्दर...
ReplyDeleteबेहद प्यारी रचना...वाकई यादगार... तहे दिल से शुभकामनाएँ
ReplyDelete:)
Bahut kuch hote hain ye shabd..badhiya likha
ReplyDeleteशब्द ही तो जीवन है ,शब्द न होते तो मानव और सभ्यताओं का कोई वज़ूद न होता ! सुन्दर !
ReplyDeleteआप को यहां देखकर हर्ष हुआ...
ReplyDeleteशब्दों को लेकर सुंदर शब्दमय रचना...