Friday, September 12, 2014

ये शब्द मेरी धरोहर हैं .........यशवन्त यश©










शब्द !
जो बिखरे रहते हैं
कभी इधर
कभी उधर
धर कर रूप मनोहर
मन को भाते हैं
जीवन के
कई पलों को साथ लिये
कभी हँसाते हैं
कभी रुलाते हैं ....
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।

~यशवन्त यश©

10 comments:

  1. शुभ प्रभात भाई यशवन्त जी
    हृदय से आभारी हूँ
    आपने मेरी धरोहर को
    ये 500वीं प्रस्तुति दी है
    यादगार प्रस्तुति है ये

    सादर


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  2. बहुत सुन्दर

    मन के कैनवास पर
    छिटक कर
    बिखर कर
    आपस में
    मिल कर
    करते हैं
    कुछ बातें
    बाँटते हैं

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  3. वाह....
    बधाइयाँ
    शुक्रिया यशवन्त
    हिन्दी दिवस का उपहार दिया आपने
    सादर

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद एवं बधाई दीदी !

    सादर

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  5. बेहद प्यारी रचना...वाकई यादगार... तहे दिल से शुभकामनाएँ

    :)

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  6. शब्द ही तो जीवन है ,शब्द न होते तो मानव और सभ्यताओं का कोई वज़ूद न होता ! सुन्दर !

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  7. आप को यहां देखकर हर्ष हुआ...
    शब्दों को लेकर सुंदर शब्दमय रचना...

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