वज़्न 2122. 2122. 212
मतला
रस्मे उल्फत है गवारा क्यों नहीं
दर्द है दिल का सहारा क्यों नहीं ।।
लाड़ से उसने निहारा क्यों नहीं
और नज़रों का इशारा क्यों नहीं ।।
इश्क मे ऐसा अजब दस्तूर है
वो किसी का है हमारा क्यों नहीं ।।
प्यार से उसने लगाया जब गले
आपने देखा नज़ारा क्यों नहीं ।।
आंख नम है गर्म सांसे किसलिए
दर्द का दिल में शरारा क्यों नहीं ।।
इश्क है मेहमान दिल में आज भी
प्यार कम है पर ज़ियादा क्यों नहीं ।।
जा रहा था राह से मेरी मगर
प्यार से उसने पुकारा क्यों नहीं।।
-अरुणिमा सक्सेना
28. 05. 20
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 03 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3722 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteलाजवाब !!!
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