धूप सा तन दीप सी मैं!
उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन,
खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मन
अश्रु से गीला सृजन-पल,
औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,
आ रही अविराम मिट मिट
स्वजन ओर समीप सी मैं!
सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं!
धूप-सा तन दीप सी मैं!
-स्मृतिशेष महादेवी वर्मा
आभार दी
ReplyDeleteमेरी प्रिय कवयित्री की सभी रचनाएँ अति प्रिय लगती है मुझे।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 12 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना , महादेवी जी का
ReplyDeleteवाह! महादेवी की कविताएँ जब भी आप डालती हैं, आपके प्रति मैं हृदय से श्रद्धावनत हो जाता हूँ। और क्या कहूँ!
ReplyDelete"तम जलधि में नेह का मोती
रचूँगी सीप-सी मैं!!!"