उड़ते - उड़ते एक दिन,
जा बैठूं किसी मुंडेर पर...
खिलखिलाती हो हंसी जहाँ,
हों खुशियां छोटी - छोटी।
प्यार करें इक - दूजे से सब,
मिलजुल कर खाएं रोटी।
उड़ते - उड़ते एक दिन,
जा बैठूं किसी मुंडेर पर...
न हो शोर - शराबा जहाँ,
बस सुने मधुर संगीत।
एक - दूसरे संग मिलकर,
करें सब समय व्यतीत।
उड़ने का हो समय,
मन करे बैठूं वहीं कुछ देर, पर।
अगले दिन फिर यूं ही,
जा बैठूं उसी मुंडेर पर।
उड़ते - उड़ते एक दिन..
-मनीष वर्मा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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