Thursday, June 4, 2020

यथार्थ की कविता ...डॉ. नवीन दवे मनावत

शब्द अगर
आईना होता
तो पहचानता
वह परछाई
जिसे घसीटा जाता है
लंबे रेगिस्तानी
रास्तों पर
प्राप्त करने को
वह खोह
जिसमे समा सके
आदमी की
तलाश और...
चाह की मंजिल.

शब्द अगर आईना
बनकर घूमता
उस जगह जहां
छिपाया जाता है
सूरज को!
दबाई जाती है चांद
की रोशनी को
तब वहां केवल
जुगनुओं की रोशनी में
मंत्रणाएं होती है
तब उस समय
शब्द बताता..
यथार्थ की कविता।

शब्द आईना बनकर
देखना चाहता है
कैसी बनावट होगी
आदमी की?
उसके अन्तर्रोदन की
पीड़ा और संवेदना
कैसी होगी?
और ....
एकांतित क्षण के
विचार
कैसे पनपते होंगे?

वस्तुतः
शब्द आईना ही होते हैं
जो बताते हैं
आदमी की औकात
कि वह कितना
गिरता है..
या गिरे हुए को
उठाता है।
जिसकी तस्वीर
खींचता रहता है
हरदम शब्द रूपी
आईना..

-डॉ. नवीन दवे मनावत

2 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना

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