अपने एहसासों को यूँ छुपाया ना करो,
चुप रह कर तुम मुझे यूँ सताया ना करो ।
अल्फ़ाज़, ख़ामोशी से अच्छे ही होते हैं,
सिर्फ़ इशारों से इश्क़ को जताया ना करो ।
कुछ बेचैन सा हो जाता है, ये मेरा मन,
रूठ कर के मेरी जान जलाया ना करो ।
ख़ुद आ कर के जान लो तुम मेरा हाल,
गैरों से ऐसे मेरा हाल पुछवाया ना करो ।
बिछड़ कर तुमसे, जी नहीं पाऊंगा मैं,
'अख़्तर' तुम्हारा है, भूल जाया ना करो ।
-अख़्तर खत्री
ख़ुद आ कर के जान लो तुम मेरा हाल,
ReplyDeleteगैरों से ऐसे मेरा हाल पुछवाया ना करो
वाह!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3729 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
अल्फ़ाज़, ख़ामोशी से अच्छे ही होते हैं,
ReplyDeleteसिर्फ़ इशारों से इश्क़ को जताया ना करो ।
बहुत सुंदर।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज गुरुवार (11-06-2020) को "बाँटो कुछ उपहार" पर भी है।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रस्तुति
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