आज समय नहीं मिला रचना चुनने का
अपनी डिजिटल डायरी से एक तोड़-मरोड़
न चादर बड़ी कीजिये,
न ख्वाहिशें दफन कीजिये,
चार दिन की ज़िन्दगी है,
बस चैन से बसर कीजिये...
न परेशान किसी को कीजिये,
न हैरान किसी को कीजिये,
कोई लाख गलत भी बोले,
बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये...
न रूठा किसी से कीजिये,
न रूठा किसी को रहने दीजिए,
कुछ फुरसत के पल निकालिये,
कभी खुद से भी मिला कीजिये...
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ReplyDeleteन परेशान किसी को कीजिये,
ReplyDeleteन हैरान किसी को कीजिये,
कोई लाख गलत भी बोले,
बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये..
बस यही हैंबात हर कोई समझ ले , तो विवाद बात का! अच्छी पंक्तियाँ साझा की आपने आदरणीय दीदी। सुप्रभात और प्रणाम 👌👌👌🙏🙏🌹🌹
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteSundar
ReplyDeleteतीनों पैरा बेमिसाल है
ReplyDeleteसस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग
वो डिजिटल डायरी की तोड़-मरोड़ जब ऐसी है तो ...:) पूरी डायरी अगर खुल जाए तो ब्राह्मणों और धर्मभीरूओं का काल्पनिक तथाकथित स्वर्ग यहीं ना हो जाए .. और हम सभी स्वर्गवासी :):):)
ReplyDelete(मजे की बात .. स्वर्ग जाना तो सब चाहते हैं, पर स्वर्गवासी कहलाने से कतराते हैं, है ना 🤔..
वो दिल चुराके दिल अपना छुपाए जाते हैं
Deleteखिलौने जैसा वो मुझको सजाए जाते हैं।
लबों पे जबसे लिखा उसने मेरे ताजमहल
है यमुना इश्क़ की और हम नहाए जाते हैं।
सुन्दर सर्जन।
ReplyDeleteन परेशान किसी को कीजिये,
न हैरान किसी को कीजिये,
कोई लाख गलत भी बोले,
बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये...
ये पंक्तियाँ एक खुशहाल जीवन का सार हैं।
लाजवाब
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुन्दर
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