Monday, June 1, 2020

चार दिन की ज़िन्दगी है


आज समय नहीं मिला रचना चुनने का

अपनी डिजिटल डायरी से एक तोड़-मरोड़


न चादर बड़ी कीजिये,
न ख्वाहिशें दफन कीजिये,
चार दिन की ज़िन्दगी है,
बस चैन से बसर कीजिये...

न परेशान किसी को कीजिये,
न हैरान किसी को कीजिये,
कोई लाख गलत भी बोले,
बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये...

न रूठा किसी से कीजिये,
न रूठा किसी को रहने दीजिए,
कुछ फुरसत के पल निकालिये,
कभी खुद से भी मिला कीजिये...

10 comments:

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  2. न परेशान किसी को कीजिये,
    न हैरान किसी को कीजिये,
    कोई लाख गलत भी बोले,
    बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये..
    बस यही हैंबात हर कोई समझ ले , तो विवाद बात का! अच्छी पंक्तियाँ साझा की आपने आदरणीय दीदी। सुप्रभात और प्रणाम 👌👌👌🙏🙏🌹🌹

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. तीनों पैरा बेमिसाल है

    सस्नेहाशीष असीम शुभकामनाओं के संग

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  5. वो डिजिटल डायरी की तोड़-मरोड़ जब ऐसी है तो ...:) पूरी डायरी अगर खुल जाए तो ब्राह्मणों और धर्मभीरूओं का काल्पनिक तथाकथित स्वर्ग यहीं ना हो जाए .. और हम सभी स्वर्गवासी :):):)
    (मजे की बात .. स्वर्ग जाना तो सब चाहते हैं, पर स्वर्गवासी कहलाने से कतराते हैं, है ना 🤔..

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    1. वो दिल चुराके दिल अपना छुपाए जाते हैं
      खिलौने जैसा वो मुझको सजाए जाते हैं।
      लबों पे जबसे लिखा उसने मेरे ताजमहल
      है यमुना इश्क़ की और हम नहाए जाते हैं।

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  6. सुन्दर सर्जन।
    न परेशान किसी को कीजिये,
    न हैरान किसी को कीजिये,
    कोई लाख गलत भी बोले,
    बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये...

    ये पंक्तियाँ एक खुशहाल जीवन का सार हैं।

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  7. वाह, बहुत ही सुन्दर

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