Saturday, April 18, 2020

दरीचे से वो जब भी झांकता है ...नवीन मणि त्रिपाठी

1222 1222 122
निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।

रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।

हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।

तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।

कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।

ठहर जाती हैं नज़रें बस वहीँ पर ।
दरीचे से वो जब भी झांकता है ।।

बरसने की जवां होती है ख्वाहिश ।
ये बादल जब ज़मीं को देखता है ।

नहीं सँभलेगा उससे दिल हमारा ।
जो डोरे रोज़ हम पर डालता है ।।

यकीनन वाम पे उतरेगा चंदा ।
वो हाले दिल हमारा जानता है ।।

न जाने कैसी है ये कहकशां भी।
सितारा हो के रुस्वा टूटता है ।।

मुक़द्दर जब बुरा होता है यारो ।
कोई अपना कहाँ पहचानता है ।।

-नवीन मणि त्रिपाठी

1 comment: