कुछ अनजानी आहटें हैं,
सफ़र ही सफ़र समाया है जिनमें,
ऐसी ही कुछ राहें हैं..
हर कदम पर खनकती हैं बारिशें,
अब हरी-सी लगती हैं ख्वाहिशें,
नए से रंग नज़ारों में समाए हैं..
हर वक्त सुनाई देता है इक शोर,
जबकि तनहाई का नहीं ओर-छोर,
बारिशों ने कैसे नगमें सुनाए हैं..
दिखते भी नहीं फिज़ाओं के रंग,
घुल से गए जैसे, बादलों के संग,
चाल बदली-सी, गीली हवाएं हैं..
अंधियारों की चली है,
चांद से बादलों की खूब बनी है,
दरख्तों ने कितने रंगों के घूंघट सजाए हैं..
-राज्यश्री त्रिवेदी
इंदौर, मध्यप्रदेश
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