Sunday, April 26, 2020

महाभारत का युद्ध और माँ

जब कभी फुर्सत मिलती है
तो माँ के बारे में सोचता हूँ
वह कभी घण्टी तो कभी हारमोनियम लगती है
थाली और कटोरी बजाती हुई माँ
कभी हँसुआ तो कभी दराँती लगती है
घास के गट्ठर में दबी हुई माँ
रविवार को बचाकर रखना चाहती है सिर्फ अपने लिए
वह देख सके इतमिनान से महाभारत का युद्ध
माँ को समझ नहीं आती बड़ी-बड़ी बातें
बहुत खुश नजर आती है माँ जब-
एक-एक के मरते हैं कौरव
पांचाली के चीर हरण पर-
बहुत जोर-जोर से रोती है माँ।
-कुमार कृष्ण

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन
    वाह!!!

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