मुहब्बत की ये कैसी दास्तां है।
अश्क आँखों में दिल में बस वफा है।
कभी दीदार किया शामों सहर तक।
कभी दुश्वार मिलना भी हुआ है।।
निभायी हमने सिद्दत से कसमें भी।
मगर फिर भी मिली हमको जफा है।।
बसी है दिल में यारों की मुहब्बत।
मेरे दिल से बस निकलती दुआ है।।
रहें आबाद वो चाहे जहां हो।
खुदा शायद यही अब चाहता है।
हुई मुद्दत उसे देखे हुये तो।
बिना उसके जीना लगता सजा है।।
उसे आवाज देकर भी बुलाया।
बेरूखी से मेरा दिल ही दुखा है।।
देखा जो आसमाँ की ओर यारा।
तो हमको चाँद भी फीका लगा है।।
-प्रीती श्रीवास्तव
वाह!!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल।
हुई मुद्दत उसे देखे हुये तो।
बिना उसके जीना लगता सजा है।
बेहतरीन गज़ल है ...
ReplyDeleteवाह
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