दीवारों के कान होते हैं
एक पुरानी कहावत है
किंतु अब दरवाज़े देखने भी लगे हैं
उनके पास आंखें जो हो गई हैं
चलन बदल गया है
पहले नहीं लगी होती थी कुंडी
सिर्फ़ उढ़के होते थे दरवाज़े
कोई भी खोल के
घर के अंदर प्रवेश कर सकता था
फिर धीरे से कुंडी बंद होने लगी
खड़काने पर ही दरवाज़े खुलते
चीज़ें बदलीं
डोर बेल का ज़माना आया
साथ ही डोर 'आई '
और सी सी टी वी भी
बेल बजते ही
पूरा घर चौकन्ना हो जाता है
दरवाज़े की आंखें
और दीवारों के कान
आपस में तय करने लगते हैं
किसे अंदर आना है
किसे नहीं...
-आरती चौबे मुदगल
अतुल्य बिम्ब/सोच ... वैसे भी लोग कहते हैं कि परिवर्तन प्रकृत्ति का नियम है ... और अभी तो कोरोना और लोक-डाउन के सन्दर्भ में तो एक और भी नया सर्वविदित बदलाव आया है ... शायद ...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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