ग़ज़ल- 212 212 212 212
अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
दूर मुझसे न जा वरना मर जाऊँगा
धीरे-धीरे सही मैं सुधर जाऊँगा
बाद मरने के भी मैं रहूँगा तेरा
चर्चा होगी यही जिस डगर जाऊँगा
मेरा दिल आईना है न तोड़ो इसे
गर ये टूटा तो फिर से बिखर जाऊँगा
नाम मेरा भी है पर बुरा ही सही
कुछ न कुछ तो कभी अच्छा कर जाऊँगा
मेरी फ़ितरत में है लड़ना सच के लिए
तू डराएगा तो क्या मैं डर जाऊँगा
झूठी दुनिया में दिल देखो लगता नहीं
छोड़ अब ये महल अपने घर जाऊँगा
मौत सच है यहाँ बाक़ी धोका "निज़ाम"
सच ही कहना है कह के गुज़र जाऊँगा
- निजाम फतेहपुरी
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ReplyDeleteझूठी दुनिया में दिल देखो लगता नहीं
ReplyDeleteछोड़ अब ये महल अपने घर जाऊँगा ..... बहुत सुंदर!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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