मुहब्बत को आँखों से छलका रहे हो ।
मुझे तुम बहुत आज बहला रहे हो।।
बयां हो रहा है नजर से तुम्हारे।
कि तुम मुझसे फिर आज घबरा रहे हों
अभी कह दो जो मुझसे है तुमको कहना।
बिना बात क्यूं बात उलझा रहे हो।।
जो ढल जायेगी शाम फिर क्या करोगे।
बहारों के मौसम में शरमा रहे हो।।
कोई गैर ले जायेगा फिर उठाकर।
अभी कुछ भी कहने से इतरा रहे हो।
कहो राज दिल में छुपा क्या तुम्हारे।
यो गुप चुप से तुम क्यों चले जा रहे हो।।
कहीं रह न जाये ये फिर से अधूरी।
नयी बात कोई तो समझा रहे हो।।
-प्रीती श्रीवास्तव
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