बहुत नाजुक सा रिश्ता है
जो मैं खुद से निभाता हूँ
बंधा हूँ मैं कहीं पर
ये भी अक्सर भूल जाता हूँ
दिल के तन्हा सफ़र में
भीड़ चारों ओर रहती है
मैं लिखकर नाम तारों में
हर सुबह मिटाता हूँ
खुशबू बदन तेरे की है
अब भी मेरी सांसों में
जिक्र तेरा हुआ जब भी
मैं नाम अपना बताता हूँ
तेरी यादों की नाज़ुक कसक
है मेरे दिल का सरमाया
इसी की वजह से "कादर"
कभी रोता हूँ गाता हूँ
-केदारनाथ "कादर"
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