Sunday, April 12, 2020

ख़ुदा ख़ैर करे' ...डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी

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तेरी आँखें हैं ख़ता वार ख़ुदा ख़ैर करे' ।
दिल हुआ मेरा गिरफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

ज़मीं की तिश्नगी को देख रहा है बादल ।
आज बारिश के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

नाम आया है मेरा जब से सनम के लब पर ।
पूरी बस्ती हुई बेज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

हर तरफ़ उनकी अदाओं पे हुआ हंगामा ।
ज़िंदगी जीना है दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

बिजलियाँ खूब गिराते हैं नशेमन पे सनम।
सब्र की टूटे न दीवार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

अब तो मासूम दिलों पर है उसी का कब्जा ।
हुस्न की चल रही सरकार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

कास आएं तो सही आप मेरी महफ़िल में ।
बज़्म हो जाए ये गुलज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

लोग उल्फ़त की तिज़ारत का तक़ाज़ा लेकर ।
खुद ब खुद आ रहे बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

अपनी ताक़त पे जो इतरा रहे थे दुनियाँ में ।
आज वो मुल्क भी लाचार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

वो क़यामत है क़रोना की तरह छूते ही ।
दिल हज़ारों हुए बीमार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

क़ैद हूँ घर में मिलूं भी तो भला कैसे मिलूं ।
याद तड़पाये बहुत बार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

-डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी

4 comments:

  1. क़ैद हूँ घर में मिलूं भी तो भला कैसे मिलूं ।
    याद तड़पाये बहुत बार ख़ुदा ख़ैर करे ।। वाह! सही चित्रण!!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. वाह !!! बहुत अच्छी रचना। सादर।

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