प्रथम दृश्य : शांति
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माँ ने लगाया
चांटा...
मैं सह गयी,
पापा ने लगाया
थप्पड़..
मैं सह गयी,
भाई ने मारा
घूंसा..
मैं सह गयी,
घर से बाहर छेड़ते थे
आवारा लड़के
मैं चुप रही,
पति पीटता रहा
दारू पीकर
मैं चुप रही,
सास ससुर
अपने बेटे की
करते रहे तरफ़दारी
उसकी गलतियों पर भी
मैं चुप रही,
मैं सदैव चुप रही
ताकि बनी रहे
घर मे शांति,
किंतु...
मैं सदैव असफल रही
शांति कायम करने में ।
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द्वितीय दृश्य : शांति
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माँ ने लगाया
चांटा...
मैं रोयी, चिल्लाई,
पापा ने लगाया
थप्पड़...
मैंने नही खाया खाना
दो दिनों तक,
भाई ने मारा
घूँसा...
मैंने की उसकी शिकायत
माँ - पापा से,
घर से बाहर
छेड़ा था
एक आवारा
मैंने दिखाया था उसे
कराटे का दाँव,
पति ने दारू पीकर
उठाया हाथ...
मैंने पकड़ ली कलाई..
तबसे
सास ससुर
अपने बेटे की
नहीं करते तरफ़दारी
उसकी गलतियों पर,
मैं करती रही
विरोध
जो मुझे गलत लगा
ताकि बनी रहे
घर मे शांति
और....
मैं सदैव सफल रही..
-इंजीनियर गणेश बाग़ी
पापा ने लगाया
ReplyDeleteथप्पड़...
मैंने नही खाया खाना
दो दिनों तक,
श्रेष्ठ रचना..
सादर...