यह कविता लगभग पच्चीस-तीस साल पहले,
अपनी बेटियों को जगाने के लिए लिखी थी,
हर साल वसंत- ऋतु में ज़रूर
मन में घूमने लगती है.......
ऋतुराज वसंत की गलियन में
कोयल रस-कूक सुनावत हैं,
अधरों पर राग-विहाग लिए
अमरावाली में, इठलावट हैं.
मधु-मदिरा पी, भ्रमरों के दल
कलियों पर जा मंडरावत हैं,
मणि-माल लिए रश्मि-रथ पर
अब भानु उदय को आवत हैं .
लखि शोभा ऐसी नैनन सों
मृदु मन सबके पुलकावत हैं,
पनघट जागी, जागी चिड़िया
मेरी गुड़िया भी जागत हैं.
बहुत बहुत सुंदर रचना
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