वक्त चुराना होगा !
काल की तरनि बहती जाती
तकता तट पर कोई प्यासा,
सावन झरता झर-झर नभ से
मरुथल फिर भी रहे उदासा !
झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा
वक्त चुराना होगा !
समय गुजर ना जाए यूँ ही
अंकुर अभी नहीं फूटा है,
सिंचित कर लें मन माटी को
अंतर्मन में बीज पड़ा है !
कितने रैन-बसेरे छूटे यहाँ से जाना होगा
वक्त चुराना होगा !
कोई हाथ बढ़ाता प्रतिपल
जाने कहाँ भटकता है मन,
मदहोशी में डुबा रहा है
मृग मरीचिका का आकर्षण !
उस अनन्त में उड़ना है तो सांत भुलाना होगा
वक्त चुराना होगा !
जग की नैया सदा डोलती
हिचकोले भी कभी लुभाते,
जिन रस्तों से तोबा की थी
लौट-लौट कर उन पर आते !
नई राह चुनकर फिर उस पर कदम बढ़ाना होगा
वक्त चुराना होगा !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवक़्त चुराना होगा वाह
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