जवाँ शोहरत , जवाँ किस्से
जवानी संगमरमरी ना रख,
राश*करें तूफानों से वर्जिश
दिवानों सा हुनर तू रख
आतश से जुनूं लेकर
हवा को कैद करके चल
कभी कश्ती जो समंदर में
राश* पतवार बनकर चल
रिश्ते नियामात हैं खुदारा
झुककर हीं राश* हैं निभते
बटोरा एक ही दौलत,
जहाँ तुम संग हो रहते
रिश्तों की पगडंडियाँ वाह
बेला चमेली रातरानी सी
कभी सुबह को दे खुशबू
कभी शाम भी सुहानी सी
रिश्तों की पगडंडियाँ वाह
राश* खूबसूरत जवानी सी
राशदादा राश*
"जीना चाहता हूँ मरने के बाद"
दार्शनिक/पागल/फकीर
चिंतक/क्रांतिविचारक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत शानदार बेहतरीन।
ReplyDelete