मैं और चिड़िया.....ओंकार
एक मैं हूँ,
जो कभी गाता हूँ,
तो दरवाज़े-खिड़कियाँ
बंद कर लेता हूँ,
एक वह चिड़िया है,
जो कहीं से
उड़ती हुई आती है,
मेरी खिड़की के पास
मुक्त कंठ से गाती है.
मेरी आवाज़
मेरे ही घर में
घुटकर रह जाती है,
उसका गीत
पूरा मुहल्ला सुनता है !!
लेखक परिचय - ओंकार
बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरी कविता को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया.आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteवाह वाह... बहुत खूबसूरत रचना 👏
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