Sunday, March 15, 2020

मैं और चिड़िया.....ओंकार



एक मैं हूँ,
जो कभी गाता हूँ,
तो दरवाज़े-खिड़कियाँ 
बंद कर लेता हूँ,
एक वह चिड़िया है,
जो कहीं से 
उड़ती हुई आती है,
मेरी खिड़की के पास 
मुक्त कंठ से गाती है.

मेरी आवाज़ 
मेरे ही घर में 
घुटकर रह जाती है,
उसका गीत 
पूरा मुहल्ला सुनता है !!



लेखक परिचय - ओंकार 

4 comments:

  1. मेरी कविता को अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया.आभार.

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  2. बहुत सुंदर रचना।

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  3. वाह वाह... बहुत खूबसूरत रचना 👏

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