आख़िर में हम मिल गए, अच्छा हुआ,
बाकी सब हम भूल गए, अच्छा हुआ ।
मैं मुझ में नहीं हूं, तुम ख़ुद में नहीं हो,
दूजे की रूह में घुल गए, अच्छा हुआ ।
मुराज़ई हुई सी थी ज़िंदगियां अपनी,
दिल से दिल तक खिल गए, अच्छा हुआ ।
ख़ुदा ने लिखा था और हो गया, देखो,
नसीब अपने खुल गए, अच्छा हुआ ।
आ गए तुम 'अख़्तर' की इन बाहों में,
लौट कर के ना फ़िर गए, अच्छा हुआ ।
-डॉ. अख़्तर खत्री
ReplyDeleteमैं मुझ में नहीं हूं, तुम ख़ुद में नहीं हो,
दूजे की रूह में घुल गए, अच्छा हुआ!!!
बहुत खूब 👌👌👌
ख़ुदा ने लिखा था और हो गया, देखो,
ReplyDeleteनसीब अपने खुल गए, अच्छा हुआ ।
वाह!!!
मेरी बीती आपने लिखी बहुत सुन्दर
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