प्यार के लिये आँसू बहाना पड़ा।
फिर जमाने से इसको छुपाना पड़ा।।
लोग बदनाम कर दे न हमको सनम।
सोचकर गम बहुत हमको खाना पड़ा।।
आँख भरती रही रात दिन ये मेरी।
दर्द सीनें में फिर भी दबाना पड़ा।।
इम्तहां रोज लेती रही जिन्दगी।
खौफ को दूर खुद से भगाना पड़ा।।
रिश्ते नाजुक बहुत हैं मेरे यार सुन।
काँटों पे चल के इन्हें निभाना पड़ा।।
इनसे बचना भी मुमकिन कहाँ था कभी।
हार कर इन्हें अपना बनाना पड़ा।।
अब न छूटे कभी इल्तजा है यही।
या खुदा सिर तेरे दर झुकाना पड़ा।।
-प्रीती श्रीवास्तव
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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