Saturday, February 17, 2018

सहज गति बन जाये...डॉ. इन्दिरा गुप्ता


जीवन गहन गहर सम लागे 
जितनो जीते जाओ
गहराई त्यों त्यों बढ़े 
जितनो वामें समाओ! 

दिव्य रोशनी ज्ञान की 
रस्सी वाय बनाओ 
पकड़ रास फिर उतरो गहरे 
तनि ना घबराओ !

एकत्व रहे यदि भाव बिच
सहज गति बन जाये
भाव बने तब एक अनंता
सफल -सफलतम हो जाओ ! 

डॉ. इन्दिरा गुप्ता

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-02-2017) को "कुन्दन सा है रूप" (चर्चा अंक-2884) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर कविता है

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  3. गंभीर बात सरल शब्दों में

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